वायुमंडलीय प्रक्रिया (ए टी पी) समूह
राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र के वायुमंडलीय प्रक्रिया समूह, वायुमंडलीय बादल, तड़ित झंझा, तड़ित एवं वायुमंडलीय बिजली, और वायुमंडलीय प्रकृतिपरक आपदाओं के पूर्वानुमान की वृद्धि हेतु पश्चिमी घाटी पर क्षेत्रीय जलवायु जैसे मूल अनुसंधान पर सक्रियता से नियुक्त है।
एशियाई ग्रीष्म बरसाती परिचालन विशाल परिचालन (निम्नस्तरीय जेट एवं उष्णकटिबंधी पूर्वी जेट) का अभिन्न अंग है जहाँ भूक्षेत्रीय आर्द्रता का अड्वेक्षन पश्चिमी घाटी के ऊपर ओरोग्राफिक लिफ्टिंग का कारण हो सकता है। पशिमी घाटी की विंडवेड दिशा की ओर उच्चस्तरीय प्रिसीपिटेशन को पूरित वायु का ओरोग्राफिक लिफ्टिंग कहते हैं। ड्यूर्णल साइकिल में प्रिसीपीटशन अधिकांशत: इन्हीं कारणों से प्रेरित है। मेघों के अन्दर जो सूक्ष्मभौतिकीय (वेपर कंडन्सेशन और डिपोसिशंस, ऑटो-कन्वेर्शन, इवापरेशन, कलक्षन, अकराशन, रिमिंग एवं मेलटिंग) प्रक्रिया है वह एइरोसोल पार्टिकल्स और डायनामिक्स के कारण है। भौतिक प्रक्रियाएं मुख्यत: वायुमात्रा में जल बाष्प के प्रवेश एवं निर्गम तथा मात्रा के अन्दर के दिशा परिवर्तन की दर द्वारा नियंत्रित है। विभिन्न प्रकार के बादलों की रचना, वर्षा तथा मेघ ड्रोपलट स्पेक्ट्रा और परिणामवश अवक्षेपण सूक्ष्मभौतिकीय एवं ऊष्मागतिकी प्रक्रियाओं द्वारा घटित है। तापमान के आधार पर मेघों का वर्गीकर्ण तप्त (ज़ीरो डिग्री से उच्च तापमान) शीत (ज़ीरो डिग्री से नीचे तापमान) या मिश्रित (उच्च शीतल एवं बर्फी सह अस्थित्व) होते हैं। पश्चिमी घाटी में जो पर्वतीय प्रेरित अवक्षिप्त है वह वर्षाकाल के दौरान ऊष्म मेघों की प्रमुखता के कारण है। चारजिंग एवं डिस्चार्जिंग प्रक्रिया पूरवा वर्षकालोत्तर मिश्रित क्रम एवं कपासी मेघों में शभारंभित किये जाते। स्थानस्थ एवं सुदूर स्पंदन मपमानों की सहायता से इन तथ्यों का विस्तृत जांच की जा सकती हैं।
भारतीय उप महाद्वीप के ऊपर प्रकृतिपरक आपदाओं में तड़ित का महत्वपूर्ण स्थान और मृत्यु दर प्रतिवर्ष 0.25 मिल्यन जनसंख्या है। वर्ष 2015 की राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत की 12.5% प्रकृतिपरक दुर्घटनायें तड़ित के कारण होती है। भूकंप, भूसकलन, बाढ़, लू जैसे प्रकृतिपरक आपदाओं की तुलना में केरल में तड़ित द्वारा होने वाले आपदा 97.5% है (एनसीआरबी 2015)। भारत में तड़ित प्रक्रिया पर वियुक्त स्थल आधारित मपमान तथा अनुसंधान हो रहे हैं। मेघ के अन्दर सकारात्मक एवं नकारात्मक चारजों के अलग-अलग होना इतना उच्चतर होता की वायु के इंसुलेटिंग क्षमा के आतीत होने के परिणामवश असीम मात्र में विद्युत ऊर्जा निकाल जाता। मगर उष्णकटिबंधी क्षेत्र में क्लौड चारजिंग प्रक्रिया अब भी स्पष्ट करना है। वर्तमान में अधिकतम जाने प्रक्रिया बर्फ क्रिस्टल्स और ग्राप्लस (तुलना में बर्फ के बड़े कण) के बीच की टक्कर है। टक्कर के परिणामवश ग्राप्लस नकारात्मक चार्ज प्राप्त करते हैं और आइस क्रिस्टल्स सकारात्मक चार्ज प्राप्त करते। ग्रपलस अधिक भारी होने के कारण मेघ के निचले भाग की ओर हिलते मगर कम भार के बर्फकन डिफ़रांशल फाल स्पीड एवं अपड्राफ्ट जे संयुक्त प्रभाव के कारण मेघ की ऊपर रहते। यह क्रमश: मेघ के अन्दर में नेट चार्ज सपरेषन के कारण होता।
मेघ के अन्दर सकारात्मक एवं नकारात्मक चारजों के अलग-अलग होना इतना उच्चतर होता की वायु के इंसुलेटिंग क्षमा के आतीत होने के परिणामवश असीम मात्र में विद्युत ऊर्जा निकाल जाता। मगर उष्णकटिबंधी क्षेत्र में क्लौड चारजिंग प्रक्रिया अब भी स्पष्ट करना है। वर्तमान में अधिकतम जाने प्रक्रिया बर्फ क्रिस्टल्स और ग्राप्लस (तुलना में बर्फ के बड़े कण) के बीच की टक्कर है। टक्कर के परिणामवश ग्राप्लस नकारात्मक चार्ज प्राप्त करते हैं और आइस क्रिस्टल्स सकारात्मक चार्ज प्राप्त करते। ग्रपलस अधिक भारी होने के कारण मेघ के निचले भाग की ओर हिलते मगर कम भार के बर्फकन डिफ़रांशल फाल स्पीड एवं अपड्राफ्ट जे संयुक्त प्रभाव के कारण मेघ की ऊपर रहते। यह क्रमश: मेघ के अन्दर में नेट चार्ज सपरेषन के कारण होता।
मेघ के निचले भाग के नकारात्मक चार्ज, नकारात्मक चरजों के स्टेप तरह सीरीस की प्रेरणा देते (स्टेप्पड़ लीडर जानते), पृथ्वी की ओर निचली तरफ वृद्धिपरक कार्य करता। जब निम्नतम स्टेप सकारात्मक चरजेड वस्तु के 50 मीटर पास पहुँचते (स्ट्रीमर मकान, पेड़ या व्यक्ति) सकारात्मक बिजली की चढ़ाव का अनुभव होता। जब स्ट्रीमर और स्टेप्ड लीडर आपस में मिलते मेघ और भूतल के बीच उच्चस्थ बिजली चार्ज का सृजन होता। मेघ में जो नकारात्मक चार्ज है वह भूतल की ओर विस्फोडात्मक तौर पर भूतल की ओर बहते। इसे रीटेर्ण स्ट्रोक या तड़ित कहते। ताप की कारण चारों ओर के वायु अतिशीघ्र विकसित होता जिससे तड़ित फ्लाष के बाद थोड़ी देर के लिए पीलिङ्ग तनदार होता (जो शब्द हम सुनते)। कभी-कभी इसी मार्ग में अनेक उत्तरवर्ती स्ट्रोक होते जिससे प्रत्येक स्ट्रोक मेघ के उच्चस्थान से नकारात्मक चार्ज का बहिष्कार करता।
प्रेक्षण स्थान
राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र ने पश्चिमी घाटी के तटीय, मध्य एवं उच्च तुंगता स्तनों में मेघ भौतिकी वेधशालाओं की स्थापना की है। रा पृ वि अ कें परिसर में स्थित वेधशाला (8.29एम, 76.59ई) एमएसएल से 20 मीटर ऊंचाई की तुंगता पर स्थित तटीय स्टेशन है। ब्रैमूर (8.75 एम, 77.08ई) दूसरा एक वेधशाला है जो रा पृ वि अ कें केआर 40 की मी उत्तर पश्चिमी दिशा में तिरुवनंतपुरम जिला के नेडुमंगाड़ क्षेत्र में 400 मी एमएसएल की तुंगता पर स्थित है। राजमालली (10.15 एन,77.02ई) में स्थित मेघ भौतिकी वेधशाला जो है वह मून्नार के पास एमएसएल से 1820 मी ऊंचाई की उच्च तुंगता का स्टेशन है। कर्नाटक के अगुम्बे (13.58एन, 75.09ई) की वेधशाला पश्चिमी घाटी पर्वतीय क्षेत्र में 600 मी उन्नयन पठार पर स्थित है। रा पृ वि अ कें, ब्रैमूर, मून्नार में ष्टित तीनों वेधशालाएं अद्यतन चालू है मगर अगुम्बे वेधशाला जल्दी ही सुसज्जित की जाएगी। यथावत मेघ भौतिकी वेधशालाओं से इकट्ठे आंकड़े अतिवर्षा, गरज तूफान& तड़ित, वर्षा ऋतु, उपग्रह – वायुयान मापन मान्यकरण हेतु और जो मौसम पूर्वानुमान मॉडल्स की पारामेटीराइसेशन नीति के परिवर्तन हेतु भी प्रयुक्त है।
उद्देश्य
- वायुमंडलीय प्राकृतिक संकटों के उचक्टर पूर्व अनुमान हेतु मेघों से संबंधित हमारी जानकारी की उन्नति के लिए मेघ भौतिकी वेधशालाओं की संस्थापना
- दक्षिणी प्रायद्वीप में अनुसंधान एवं लघु अवधि तड़ित पूर्वानुमान हेतु तड़ित संसूचना नेटवर्क का विकास
- भारत के पश्चिमी तट में अतिवर्षा, गरजतूफान एवं तड़ित के निर्माण, प्रजनन एवं छितराव की जानकारी
- उष्ण कटिबंधी संवहनकारक में दैनिक कालचक्र की जांच
- बहु कोशिका संवहन गर्जनमेघ निर्माण, तड़ित और इसका सूक्ष्म भौतिकी तथा अष्ठायी परिवर्तन की जांच-पड़ताल
- मेघ संरचना और मेघ प्रकार से संबंधित निम्न एवं मध्यम परतों में ऊष्मा गतिकी एवं भौतिकी परिवर्तन संबंधित विज्ञान को आत्मसात करना
- उष्ण कटिबंधी क्षेत्र में वायुविलय मेघ अंतक्रिया प्रसंस्करण की जाँच करना
- पश्चिमी घाटी में पर्वतीय प्रतिभागिता समझना
- वायुमंडलीय बिजली एवं तड़ित के अनुश्रवण हेतु देशी उपकरण का विकास करना।