प्रो: सी. करुणाकरन (1917-1999)
चेरुवारी करुणाकरन का जन्म 6 मई 1917 को केरल राज्य के कण्णूर जिला के तलशेरी में हुआ। उनकी शिक्षा चेन्नै में हुई और बाद में बनारस हिंदु विश्वविद्यालय जहाँ से उन्होंने सन् 1938 में भूविज्ञान में मास्टेर्स उपाधि-प्राप्त की। उन्होंने उत्तर प्रदेश के खनिज सर्वेक्षण विभाग में भूवैज्ञानिक के रूप में अपना करियर शुरू किया। मद्रास (अब चेन्नै) के प्रसिडन्सी कॉलज में भूवैज्ञानिक के रूप में अपना करियर शुरू किया और बाद में वाल्टयर के आंध्र विश्वविद्यायल में नवारंभित भूविज्ञान विभाग के प्रभारी रहे। अपनी प्रेरणादायक कक्षाओं के माध्यम से, उन्होंने एक उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की जो अपने छात्रों में शैक्षिक उत्साह पैदा कर सके।
1948 में प्रो.करुणाकरन को भारत के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) में एक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। सन् 1968 में वे दक्षिणी क्षेत्र के प्रभारी उप महानिदेशक हुए और अप्रैल 3, 1974 को महा निदेशक, 1975 में अधिवर्षिता के बाद वे तेल और प्राकृतिक गैस आयोग के विशेष कार्य अधिकारी नियुक्त किये गये और बाद में केरल राज्य योजना बोर्ड के तकनीकी सदस्य बने। सन् 1978 में उन्होंने पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र की संस्थापना की और प्रथम निदेशक रहे। वे जिन विभिन्न पदों में रहे उनमें शामिल हैं: सदस्य, शासी निकाय, वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान उप अध्यक्ष एस्केप अन्तर्राष्ट्रीय, अध्यक्ष, भारतीय भू भौतिकी संघ, अध्यक्ष भारतीय प्रायद्वीपीय भू विज्ञान संस्थान और अध्यक्ष, भारतीय जियो साइन्स अकादमी. प्रो. सी.करुणाकरन मई 28, 1999 को चेन्नै में स्वर्गवास हुए।
प्रो. करुणाकरन को अनेक उत्कृष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त हैं। सन् 1965 में उन्होंने ग्रेट निकोबार द्वीप के प्रथम संयुक्त वैज्ञानिक अभियान का नेतृत्व किया जो विश्वव्यापी ध्यान आकर्षित कर सका। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह सूचित किया था कि भारत की दक्षिणीतम बिन्दु कन्याकुमारी नहीं, बल्कि पिग्मालियन बिन्दु वर्तमान इन्दिरा गांधी पॉइंट है। उन्होंने सिक्किम के ज़ेमु ग्लैसियर में एक वैज्ञानिक अभियान का आयोजन किया, जहां भारत में पहली बार बर्फ की मोटाई को मापने के लिए भूभौतिकीय विधियों का इस्तेमाल किया गया था। प्रो.करुणाकरन ने भारतीय अंटार्टिका अभियान की कल्पना की और सूत्रण भी किया जो तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को समर्पित किया था। व्यापक रुचियों के व्यक्ति प्रो. करुणाकरन के ऑरकिड विषयक ज्ञान सर्वमान्यता प्राप्त था। वे विशेषज्ञ गोताखोर थे और कोचिन नेवल बेस के अपने आयुवर्ग के गोता लगाने के अभिलेख में स्थान प्राप्त हैं। उन्होंने कोगिन ब्रौन स्मारक स्वर्णपदक, आन्ध्र विश्वविद्यायलय के स्वर्ण पदक एवं प्राध्यापकी और एक्सप्लोरेर्स क्लब की सदस्यता सहित अनेक पुरस्कार प्राप्त किये थे।
पृथ्वी विज्ञान के समूचे अनुशासनों को एक ही छत के नीचे लाने वाली एक बहु अनुशासनिक संस्था प्रो. करुणाकरन का सपना था। अपने सपने के बारे में उन्होंने विश्व के प्रमुख अनुसंधान केंद्रों के वैज्ञानिकों से विस्तृत चर्चा की थी। उनके दर्शन का परिणाम देश के प्रमुख संस्था के रूप में परिणत हुआ।
संसंस्थापक निदेशक प्रो. सी. करुणाकरन के सम्मान में पृ वि अ कें ने वृत्तिदान व्याख्यान की व्यवस्था की है। भारत सरकार, इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. के. कस्तूरीरंगन ने सर्वप्रथम व्याख्यान दिया था और उसी श्रृंखला के ताज़ा याने नौवाँ व्याख्यान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी और ब्रह्मविज्ञानशास्री प्रो. टी. पद्मनाभन ने प्रस्तुत किया।