राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र 18.6 एकड परिसर में निर्मित 50000 वर्ग फुट विशाल भवन में स्थित है। वर्ष 1986 में रा पृ वि अ केंद्र परिसर का विकास वस्तुत: असीमान्त भूचिह्न उपलब्धि है कि एक उपेक्षित चिकनी मिट्टी खनन केंद्र को एक वर्ष के सीमित समय में एक सुन्दर हरियाली परिसर बदलवाया। समस्त सुविधायें युक्त यह विस्तृत परिसर जो नगर के धक्कम-धक्का एवं शोरगुल से मुक्त प्रकृति प्रेमी वातावरण में स्थित है वह संस्थापक निदेशक प्रो. सी करुणाकरन का लक्ष्य था जो तत्कालीन निदेशक डॉ. एच के गुप्ता तथा तत्कालीन रजिस्ट्रार श्री एम सेतुमाधवन के नेतृत्व से अनुभव कर सके। वर्तमान सुन्दर हरियाली परिसर उनके प्रति अधिक आभारी है साथ साथ् इस ज़मीन हरियाली परिसर के रूप में पुन: ओजस्वित करके 200 से अधिक अपूर्व जाति के पेड-पौधों के आवास स्थान बनाने में डॉ एस सतीशचन्द्रन नायर के संकल्प एवं कठिन मेहनत भी है।
रा पृ वि अ कें भवन का निर्माण स्वाभाविक अनुपात में ढाल तथा खनन किये गये क्षेत्र में प्रकृति प्रेमी वास्तुकलात्मक अभिकल्प में किया है। भवन विभिन्न खंडों में स्थित हैं। मुख्य भवन में प्रशासन, पुस्तकलाय, सभा कक्ष और श्रोता कक्ष स्थित है। चार अंतसंबंध खण्डों में वैज्ञानिकों के बैठने का प्रबंध है। प्रयोगशाला खण्ड में सभी प्रभागों की मुख्य प्रयोगशालायें हैं जिन्हें केंद्रीकृत तौर पर सभी अनुशासनों के वैज्ञानिकों से अभिगमन प्राप्त है। जलपान-गृह तथा अतिथि गृह मुख्य गुंजाइश भरी कार्यकलाप से दूर स्थित है। जलपान गृह प्रात: 9 बजे से शाम 4.30 तक कार्यरत है जहाँ केरल प्रणाली के नास्ता, मध्याह्न भोजन, अल्पाहार, चाय एवं कॉफी मिलते हैं। सन् 2004 में नई जटिल सुविधाओं की व्यवस्था के लिए प्राप्त खण्ड के साथ एक प्रयोगशाला खण्ड भी जोडा गया जहाँ दो छोटे बैठक तथा चर्चा कक्ष भी हैं। परिसर की हरियाली एवं प्रशांति पर बिना प्रभाव पडे आवश्यकता तथा अनिवार्यता के अनुसार रा पृ वि अ कें विकसित हो रहा है