geoscience

ठोस पृथ्वी के भीतर दिक्काल में विभिन्न प्रसंस्करण पर मूल ज्ञान, इन प्रसंस्करणों पर अंतरविषयक अनुसंधान, इनिग्माटिक जियोडायनामिक समस्याओं का समाधान और खनिज संचय की प्रकृति एवं उद्भव और भविष्य के खनिज खोज की कुशल योजना हेतु महत्वपूर्ण पूर्वापेक्षा है। महाद्वीपीय पर्पटी का प्राचीन विकास अब भी रहस्य और चर्चित विषय है। जिस प्रकार महाद्वीप बने, विकास हुए और 3.5 बिल्यन वर्ष की लंबी अवधि के दौरान हुए परिवर्तन संबन्धित अनेक बद्धवत सूचनाएं दक्षिण भारत के भूभाग में सुरक्षित होने की प्रतीक्षा है। यद्यपि प्रायद्वीप में विस्तृत अध्ययन पिछले 150 वर्ष की अवधि के दौरान हुआ है फिर भी बहुत कुछ करना शेष है की प्रीकंब्राइन भूविज्ञान एवं क्रस्टल विकास के आधुनिक विचार का विकास पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास तथा प्रयोगशालाओं की सुविधाओं को वृद्धि के कारण हुआ है। नई परिकल्पनायें, विशेषकर जियोकेमिस्ट्री, जियोक्रोनोलोजी और जियोफिसिक्स के क्षेत्र में नये उपस्करों तथा विश्लेषणात्मक तकनीक के ज़रिए जाँच करनी है। ये प्रयास ऐसी बातें समझने में महत्वपूर्ण सूचना प्रदान करेंगे कि 1)जिस प्रकार भारतीय लिथोस्फियर विभिन्न प्रकार विकसित आर्चियन-एर्ली प्रोटेरोज़ोइक क्राटोंस बन गये जिंका मध्य से अन्त प्रोटेरोज़ोइक प्लैटफ़ार्म बेसिन्स 2)क्राटोन के टक्टोनिक एवं टंपरल विकास, मोबाइल बेल्ट व कवर सीक्वंसेस 3)लोवर और अप्पर क्रस्टल रियोलोजी के अनुसार प्लेट मोषन का डायनामिक्स 4)आसिड/बेसिक मग्नेटिस्म की अवस्थायें और आर्थिक दृष्टि से संपुष्ट अयन, कोपर,क्रोमियम, मांगनीस, गोल्ड, पीजीई और ग्राफईट जैसे खनिजों का विकास/भारत का दक्षिणी क्षेत्रों में तल छटी विस्तृत रूप से जमा हुआ है जो भारत महा सागर के मौसम परिवर्तन, समुद्री लेवेल परिवर्तन के चक्र और होलोसीन के दौरान मौसम इतिहास तथा पश्चिमी घाटी के उद्धार के संबंध में महत्वपूर्ण होता है। ये उच्च हयड्रोकार्बन भण्डार के लिए भी महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

प्राकृतिक आपदायें विशेषकर कंपन और भूस्कलन जो भारत के दक्षिणी पश्चिमी भूक्षेत्र में होते हैं उनका कारण भी सक्रिय एवं नियोटक्टोणिक (नियाजीन एवं क्वाटरनरी) प्रक्रिया है जो कभी-कभी पुराने आर्चियन या प्रोटेरोज़ोइक षीर क्षेत्र में सृजित है या पुराने क्षेत्रीय क्रटोनिक और भूभाग की सीमाओं में कभी-कभी दोषी दिखाते हैं। सामाजिक प्रयोग में भी इनके विस्तृत अध्ययन का महत्वपूर्ण संबंध है।

हम योजना बनाते हैं कि सभी कार्यकलापों के आगे, घोषित लक्ष्य व उद्देश्य की पूर्ती हेतु क्रमश: उच्चतर सुविधाओं की स्थापना करें। प्रयोगशाला के अध्ययन हेतु प्राथमिक फील्ड आंकड़े और नमूने बटोरने के लिए इग्नेयस पेट्रोलोजी, मेटमोरफिक पेट्रोलोजी, वेथेरिंग प्रोसेसेस, जियोमोर्फोलोजी और सेड़िमेंटोलोजी के विशेषज्ञों का वैज्ञानिकों के विभिन्न ग्रूप बनायेंगे। महत्वपूर्ण फील्ड क्षेत्र के वास्तविक स्थान इस प्रकार निश्चित करेंगे ताकि एसजीटी के लिए जियोडायनामिक विकास मॉडल बताते हुए क्षेत्रीय भूविज्ञान के सभी बातों को शामिल किया जा सके। नये प्रश्न जहाँ तक प्राप्त हो पत्थर प्रकारों के बीच आपसी संबंध समहजने, भूविज्ञान घटनाओं के कालक्रम समझने पेट्रोलोजिकल एवं जियोकेमिकल अध्ययनों हेतु नये नमूने बटोरने संबन्धित अध्ययन भी करेंगे। नमूनों के पेट्रोजेनेसिस स्वभाव समझने हेतु उनके ट्रैस और मुख्य तथा आरईई विश्लेषण भी करेंगे। इग्नेयस इण्ट्रूसीव्स नमूना कर के संरचना से उनके संबंध की भी जांच करेंगे। यू-टीएच-पीबी डेटिंग की दृष्टि से संरचनाओं के आपसी संबंध और खनिज वर्धन की जाँच भी करेंगे।

फील्ड कार्य के अनुवर्ती कार्रवाई में जियोक्रोनोलोजिकल अध्ययन शामिल है जिनमें इलेक्ट्रॉन माइक्रोप्रोब और एक्सआरएफ़ के प्रयोग से मोनोसाइट का यू-टीएच-पीबी डेटिंग, मैका का आर-आर डेटिंग भी शामिल है जिससे एसजीटी के टक्टोनोमेटमोर्फिक विकास अधिक समझ कर सकता। पत्थर जातियों निकलते द्रव की प्रकृति समझने हेतु लेसर रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं फ्लूरसेंस अध्ययन और मेटामोर्फिस्म, मिनेरलाइसेशन तथा हयड्रोकार्बन उपस्थिती समझने हेतु डेट्रीटल क्वार्ट्स ग्राइन्स भी करेंगे। सेड़िमेंट कोर्स के अध्ययन से समुद्री लेवेल परिवर्तन, मौसम परिवर्तन आदि की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। ये परिणाम प्रस्तावित ऐसोटोप और रेडियोकार्बन कार्य से मिलने से अतीत घटनाओं तथा परिवर्तनों के पुनर्गठन में सहायक होता है।