environmental science

पृथ्वी में जीवन कायम रखने के लिए पानी सब से महत्वपूर्ण साधन है की इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करणी है। कृषि उत्पादन, पर्यावरण विशुद्धि, उद्योग वृद्धि, बिजली उत्पादन और बहुतेरे अन्य प्रकृतिपरक एवं मानव-सृजित प्रक्रियाएं भी पानी की उपलब्धता पर निर्भर है। पानी एवं पर्यावरण क्षेत्र के वैज्ञानिकों की प्रथम एवं सर्वोच्छ प्राथमिकता शुद्ध पानी की पहुँच और प्रदूषण दूर करना है। सदा परिवर्तित जलवायु और पर्यावरण में मानवीय हस्तक्षेप के इस युग में नदियों, तालाबों एवं भू ताल पर या नीचे पानी का होने और अवक्षिप्त, वक्षिप्त तथा प्रस्वेदन के प्रभाव से मिला कर जलविज्ञान याने पनि का अध्ययन बिलकुल महत्वपूर्ण है। बहुतेरे अध्ययनों से व्यक्त है की पृथ्वी की त्वचा सतह से नीचे अक्विफर तक प्रतिकूल मानवीय कार्यकलापों के कारण कठोर तनाव पर है। हमारे सीमित अलवणीय जल स्रोत के स्थायी विकास एवं अच्छी परियोजना के लिए सतह से सतह संस्तर तक के विभिन्न पर्यावरण घटक समूहों/ उप व्यवस्थाओं चालू भिन्न-भिन्न जलविज्ञान प्रसंस्करणों की विस्तृत जानकारी पूर्वापेक्षित है।

राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (रा पृ वि अ कें) के जलवियन प्रसंस्करण ग्रूप पृथ्वी के नाजुक क्षेत्र को विशेष ध्यान देते हुए जल स्रोत और जलविज्ञान अनुसंधान के व्यावहारिक पहलुओं पर केन्द्रित करता है। पृथ्वी के नाजुक क्षेत्र-एर्थ क्रिटिकल ज़ोन ऐसी एक जटिल स्वाभाविक प्रतिकृया है जहाँ सौर्य ऊर्जा, वायुमंडलीय निक्षेप एवं गैसेस महाद्वीप के पत्थर और जीव के परस्पर प्रभाव से मिट्ठी अनुरक्षा, वायुमंडलीय पारिस्थितिक तंत्र और स्वच्छ पानी संभव है। इस शोध-वर्ग का अध्ययन क्षेत्र मुख्यत: तीन विस्तृत विषय वर्ग याने सतह जल जलविज्ञान, भूजल जलविज्ञान और पर्यावरण जलविज्ञान पर आता है। अनुसंधान के थ्रस्ट क्षेत्रों में क्रिटिकल जोने स्टडीस, कैचमेंट जलविज्ञान, स्पिंग्स के जलविज्ञान, वाटरशेड मॉडलिंग & प्रबंधन, बाढ़। सूखा निवारण & प्रबंधन, पालियो-जलविज्ञान/ बाढ़ एवं पालियो-क्लैमटोलोजी, फ्लूवियल जियोमोर्फोलोजी, बयोजियोकेमिस्ट्री, सोलूट डायनामिक्स, पानी गुणत्व अनुवीक्षण, प्रदूषण मूल्यांकन एवं निवारण शामिल हैं।